सकट चौथ यानि गणेश जी का व्रत जिसे महिलाएं अपनी संतान के लिए रखती है और पूरा दिन निर्जल रहकर इस व्रत को पूर्ण करती है| ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु मिलती है और उनके संकट टल जाते है| इस व्रत को विधिपूर्वक संपन्न करने के लिए सभी ग्रंथों के अनुसार मुहूर्त का एक ही नियम हैं कि चंद्रमा का उदय और चतुर्थी दोनों का संयोग होना चाहिए, अर्थात चंद्रमा को अर्घ्य तभी दिया जाना चाहिए जब चतुर्थी तिथि में चंद्रोदय हो रहा हो और चन्द्रदेव अर्घ्य तभी स्वीकार करेंगे जब चतुर्थी तिथि विद्यमान हो और दोनों एक दूसरे के पूरक होंगे|
सकट चौथ व्रत तिथि और मुहूर्त
सकट चौथ व्रत कथा
एक बार गणेशजी बाल रूप में चुटकी भर चावल और एक चम्मच में दूध लेकर पृथ्वी लोक के भ्रमण पर निकले। वे सबसे यह कहते घूम रहे थे कि कोई मेरी खीर बना दे, कोई मेरी खीर बना दे। लेकिन किसी ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। तभी एक गरीब बुढ़िया उनकी खीर बनाने के लिए तैयार हो गई। इस पर गणेशजी ने उसे घर का सबसे बड़ा बर्तन चूल्हे पर चढ़ाने को कहा। बुढ़िया ने बाल लीला समझते हुए घर का सबसे बड़ा भगौना उस पर चढ़ा दिया।
गणेशजी के दिए चावल और दूध भगौने में डालते ही भगौना भर गया। इस बीच गणेशजी वहां से चले गए और बोले अम्मा जब खीर बन जाए तो बुला लेना। पीछे से बुढ़िया के बेटे की बहू ने एक कटोरी खीर चुराकर खा ली और एक कटोरी खीर छिपाकर अपने पास रख ली। अब जब खीर तैयार हो गई तो बुढ़िया माई ने आवाज लगाई - आजा रे गणेशा खीर खा ले। तभी गणेश जी वहां पहुंच गए और बोले कि मैंने तो खीर पहले ही खा ली। तब बुढ़िया ने पूछा कि कब खाई तो वे बोले कि जब तेरी बहू ने खाई तभी मेरा पेट भर गया। बुढ़िया ने इस पर माफी मांगी। इसके बाद जब बुढ़िया ने बाकी बची खीर का क्या करें, इस बारे में पूछा तो गणेश जी ने उसे नगर में बांटने को कहा और जो बचें उसे अपने घर की जमीन में गड्ढा करके दबा दें।
अगले दिन जब बुढ़िया उठी तो उसे अपनी झोपड़ी महल में बदली हुई और खीर के बर्तन सोने- जवाहरातों से भरे मिले। गणेश जी की कृपा से बुढ़िया का घर धन दौलत से भर गया। हे गणेशजी भगवान, जैसे बुढ़िया को सुखी किया वैसे सबको खुश रखें व सुखी रखें|
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