Devi - Devta Jagat

षट योगिनी - Shat Yogini - Six Yogini


जैसा कि यह प्रश्न थोड़ा सा घुमावदार था - एवं अध्यात्मिक तथा तंत्र दोनों जगत से सम्बन्ध रखता है - जिस प्रकार तंत्र जगत के क्षेत्र में वाम मार्ग में षट कर्म प्रचलित हैं और प्रत्येक वाममार्गी साधक के लिए इनका विशेष महत्व होता है ठीक उसी प्रकार आध्यात्मिक जगत में योगिनी शब्द शब्द एक व्यापक महत्व रखता है - कोई भी शक्ति साधक योगिनी शक्ति और उनके प्रभाव से अछूता नहीं रह सकता - वास्तव में प्रश्न यह उठता है तब कि ( योगिनियां हैं क्या और शक्ति साधना में इनका क्या लेना-देना है ) ?

तो यहाँ इस बात का विवेचन आवश्यक हो जाता है - जिस प्रकार शैव सम्प्रदाय के लिए शिव अथवा रूद्र की कल्पना या पूर्णता द्वादश ज्योतिर्लिंगों के बिना पूर्ण नहीं समझी जाती है उसी प्रकार शाक्त सम्प्रदाय के लिए भी योगिनी महत्वपूर्ण हैं - जब आवरणपूजा की बात आती है तब योगिनी पूजन परम कर्म बनता है।

योगिनियां वास्तव में आद्य शक्ति जगदम्बा की सहचरियों अथवा सखियों के रूप में गणित होती हैं - इनकी संख्या अनेक ग्रंथों एवं उद्धवरणों के आधार पर भिन्न-भिन्न कही जाती है - किन्तु सर्वमान्य संख्या चतुःषष्टि (६४ ) मानी जाती है -!

जिसमे से षट योगिनी के भेद अलग हैं जो प्राणशक्ति से सम्बंधित हैं जिसे हम कुण्डलिनी शक्ति के नाम से भी जानते हैं - कुण्डलिनी शक्ति में भी विभिन्न मतों और विद्वानों के आधार पर अलग-अलग चक्र भेद कहे जाते हैं - किन्तु सर्वमान्य चक्र 7 माने जाते हैं - जिन्हे गूढ़ार्थ में 6 ही माना गया है - मूलाधार से आज्ञाचक्र - सहस्रार नामक चक्र को गणना से अलग  गया है - क्योंकि उसे ब्रह्म/शून्य/परम/समाधि तत्व से चिन्हित किया गया है और वहीँ पर शिव और शक्ति एकाकार हो जाते हैं -!

चूँकि विषय षट योगिनी से सम्बंधित है अस्तु मूल विषय पर आते हुए माँ की कृपा स्वरुप प्राप्त ज्ञान के आधार पर इसकी तालिका प्रस्तुत कर रहा हूँ - किसी भी दोष के लिए मुझ मंदबुद्धि को क्षमा प्रदान करें एवं यदि इसमें किसी सत्य अंश के उपस्थित होने की दशा में मेरी माँ महाकाली को धन्यवाद अवश्य दें -!

१. डाकिनी

वास :- मूलाधार चक्र
मूल शक्ति :- ब्राह्मी
आसन :- चतुर्दल कमल
सहचर :- ब्रह्मदेव
बीज :- लं

२  राकिनी

वास :- स्वाधिष्ठान चक्र
मूल शक्ति :- वैष्णवी
आसन :- छहदल कमल
सहचर :- विष्णु
बीज :- वं

३. लाकिनी

वास :- मणिपुर चक्र
मूल शक्ति :- रौद्री
आसन :- दशदल कमल
सहचर :- रूद्र
बीज :- रं

४. काकिनी

वास :- अनाहत चक्र
मूल शक्ति :- रौद्री
आसन :- द्वादशदल कमल
सहचर :- ईशान रूद्र
बीज :- यं

५. शाकिनी

वास :- विशुद्ध चक्र
मूल शक्ति :- पंचमुखी शक्ति
आसन :- सोलह दल कमल
सहचर :- पंचमुखी सदाशिव
बीज :- हं

६. हाकिनी

वास :- आज्ञा चक्र
मूल शक्ति :- बहुमुखी शक्ति
आसन :- द्विदल कमल
सहचर :- लिंगरूप शिव
बीज :- ॐ


देवी मंदिर पचनेही - भद्रकाली - Devi Mandir Pachanehi - Pachnehi - Bhadrakali Mandir Pachnehi


अपनी इस बार की यात्रा के दौरान मैं इस मंदिर में भी पहुंचा जहाँ के बारे में माना जाता है की यदि श्रद्धा पूर्वक कोई भी मन्नत मांगी जाये तो उसे पूरा होने में बिलकुल भी समय नहीं लगता - इस गांव में होने वाले किसी भी शुभ कार्य में सबसे पहले इस मंदिर पर उपस्थिति दर्ज़ करवाना आवश्यक माना जाता है - इस मंदिर में आने के बाद ही लोग किसी कार्य में आगे जाते हैं -!

वस्तुतः यह पूरा गांव मूल रूप से राजपूतों का है और यहाँ पर मूल रूप से राजपूतों की उपजाति वैश रहते हैं - जिनका मूल निवास उन्नाव जिले के डौंडिया खेरा में माना जाता है जहाँ अभी कुछ दिनों पहले केंद्रीय सरकार के द्वारा कुछ अफवाहों के आधार पर स्वर्ण खुदाई का बड़ा लम्बा ताम-झाम लगाया गया था -!

जैसा की लगभग बहुत से लोगों को मालूम होगा किवदंतियों के आधार पर वैश राजपूतों का वर्गीकरण निम्न प्रकार है -!

मूल जाति :- क्षत्रिय
उपजाति :- वैस / बैस

वंश :- वंश का आधार कई जगह पर भिन्न - भिन्न माना जाता है जैसा की मैंने जब कई जगहों पर इस बात का विश्लेषण किया तो कहीं मुझे - चंद्रवंशी और कई जगह सूर्यवंशी के उद्धवरण मिले - लेकिन सर्वमान्य तथ्य है की इनका सम्बन्ध सूर्यवंश से है और किवदंतियों के आधार पर ये भगवान श्रीराम के लघु भ्राता लक्ष्मण के वंशज माने जाते हैं - इनकी कुलदेवी माता भद्रकाली हैं एवं इनका जनजातीय टोटम कोबरा माना जाता है -!

मूल स्थान :- डौंडिया खेरा जिला उन्नाव उत्तर प्रदेश

मंदिर एवं मूर्ति उद्भव :- जहाँ पर आज मंदिर बना हुआ है वहां पर मूर्ति का उद्भव जमीन के अंदर से हुआ है और वास्तव में यह मूर्ति देखने पर शिवलिंग की तरह दिखती है जिसकी वजह से इस गावं में रहने वाले नयी पीढ़ी के लोगों को इस बात तक का पता नहीं है की यह मूर्ति किस देवी या देवता की है - उन्हें बस इतना पता है की यह देवी जी का मंदिर है -!

इस मूर्ति का उद्भव भी कब हुआ यह ठीक - ठीक कह पाना मुश्किल है क्योंकि इसके बारे में भी इस गावं में लोग कुछ बता पाने में असमर्थ हैं तो जाहिर सी बात है की इस मूर्ति के लिए भवन निर्माण का कार्य सर्वप्रथम किसने करवाया यह जान पाना भी बहुत मुश्किल सा है -!

लेकिन प्रचलित जनश्रुतिओं के आधार पर यह प्रचलित है की एक दिन रात में तत्कालीन किसी पूर्वज को सपने में देवी माँ ने दर्शन दिए और कहा कि " फलां जगह पर मेरी पिंडी जमीन से बाहर निकेलगी - उस स्थान पर मेरी पूजा होगी - लेकिन ध्यान रहे जिस स्थान पर मेरी पिंडी का उद्भव होगा वहां पर मेरी पिंडी के साथ कोई छेड़छाड़ या नहीं की जाये - यदि किसी ने भी ऐसा करने की कोशिश की तो उसे मेरे कोप का भाजन बनना पड़ेगा "-!

इस सम्बन्ध में गांव के ही कुछ नयी सोच रखने वाले लोगों ने जब कुछ सालों पहले इस बात का खंडन करने के उद्देश्य से पिंडी के पास कुछ निर्माण कार्य करने की सोच के साथ कार्य प्रारम्भ करवाने की कोशिश की तो उन्हें कई प्रकार की मानसिक एवं शारीरिक विपत्तियों का सामना करना पड़ा -!

इसके बाद तत्कालीन पूर्वजों ने मंदिर का निर्माण करवा दिया - फिर धीरे - धीरे मंदिर प्रांगड़ की दीवारें जो मिटटी और चूने से बानी हुयी थीं ध्वस्त होने लगीं -!

नवयुवा समाज से गांव के कुछ संपन्न लोगों द्वारा काफी सहयोग भी प्रदान किया जा रहा है माध्यम से इस सिद्ध मंदिर के कायाकल्प होने के आसार नजर आ रहे हैं -!

धनाभाव के चलते पिछले नवरात्रों में नवयुवक कमेटी द्वारा मूर्ति स्थापना के कार्यक्रम पर प्रश्नचिन्ह लग जाने की वजह से गावं के ही पुत्र एवं भारतीय प्रशासनिक सेवा के श्री राजाबाबू सिंह जो वर्तमान इंडो तिब्बत सेना के इंस्पेक्टर जनरल के पद पर आसीन हैं उनके द्वारा समस्त खर्च वहन किया गया तथा इस बात का संकल्प लिया की आने वाले समय में भी वे इस कार्य को अनवरत जारी रखेंगे -!

मैं उम्मीद करता हूँ कि तथाकथित इंस्पेक्टर जनरल साहब जो की धार्मिक कार्यों में बहुत रूचि लेते हैं इस पवित्र कार्य में हमेशा अपना योगदान देते रहेंगे और इस अलख को जगाये रहेंगे - जिससे की आने वाली पीढ़ियों में भी अपने धर्म - देवस्थानों तथा धार्मिक कार्यों रुझान बने एवं लोग भौतिकता से उठकर आध्यात्म को पहचानें -!

इसके पश्चात गांव के कुछ नवयुवा लोगों ने एक कमेटी का गठन किया और नवरात्रों में मूर्ति स्थापना इत्यादि के कार्यक्रमों का आयोजन होने लगा - इसके बाद कुछ अभिभावकों ने एक कमेटी का गठन किया और ग्राम समाज के सहयोग से मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ - आज काफी हद तक पुनर्निर्माण का कार्य हो चूका है एवं अनवरत जारी भी है -!

विशेष :- इस गांव की एक खास बात यह है की आज तक यहाँ कोई मुस्लिम नहीं रह सकता - यह किसी इंसान की विरोधी प्रवृत्ति नहीं है बल्कि यह प्राकृतिक चक्र है - इस प्रकार की किवदन्तिओं को असत्य सिद्ध करने के लिए अब तक कई मुस्लिम परिवारों के द्वारा ऐसी कोशिशें की गयी हैं लेकिन कभी भी उनका समय काल कुछ वर्षों से ज्यादा का नहीं रहा और अंततः उनका सब कुछ इसी गांव में स्वाहा हो गया ना घर बचा ना परिवार अब इसे क्या कहेंगे यह तो मैं नहीं कह सकता बस इसे एक दैवी खेल के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता -!

Surya Dwadash Naam - सूर्य द्वादश नाम


अथ सूर्य द्वादश नाम


आदित्य: प्रथमं नाम द्वितीयं तु विभाकर: ।
तृ्तीयं भास्कर: प्रोक्तं चतुर्थं च प्रभाकर: ।।

पंचम च सहस्त्रांशु षष्ठं चैव त्रिलोचन: ।
सप्तमं हरिदश्वश्च अष्टमं च विभावसु: ।।

नवमं दिनकृ्त प्रोक्तं दशमं द्वादशात्मक: ।
एकादशं त्रयोमूर्तीद्वादशं सूर्य एव च ।।

द्वादशैतानि नामानि प्रात:काले पठेन्नर: ।
दु:स्वप्ननाशनं सद्य: सर्वसिद्धि: प्रजायते ।।

आयुरारोग्यमैश्वर्य पुत्र-पौत्र प्रवर्धनम ।
ऎहिकामुष्मिकादीनि लभन्ते नात्र संशय: ।।


इति सूर्य द्वादश नाम
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